आँखें खोल जब पहली बार दुनिया देखी,
माँ की आँखों में आंसू, बाबा की उतरी शकल देखी।
कंधे से सरका पल्लू तो मां की बदन पे ख़ामोश चीखें देखीं,
दीदी की हाथों में मेंहदी और आँखों में चुभते टूटे सपने देखीं ।।
अनुमति में बांध कर तो घर का दायरा भी कुछ सोचता है,
जिंदगी तुम्हे पुकार रही है,ख्वाहिश क्या हैं तुम्हारे,
मुझसे ये कोई नहीं पूछता है ।।
घर में दो दिन की मेहमान हो,
सलीके से रहो, दहेज़ से निपटाओ,
भाई मेरे सपनों को चीजों से तोलता है,
बड़ी होकर बनना क्या चाहती हो,
मुझसे ये कोई नहीं पूछता है ।।
उस दिन जब उस गली से मेरा जाना हुआ,
नरभक्षी नजरों का मुझे छूना हुआ,
बदन तुम्हारा सूझा क्यों है ? कपड़े फ़टे कैसे ?
मुझसे ये कोई नहीं पूछता ।।
सवाल तुम्हारे हिस्से,
मेरे हिस्से हमेशा जवाब ही आता है,
"कहो कुछ,आवाज़ मुझसे तुम्हारी सुननी है"
ये मुझसे कोई नहीं पूछता है ।।
दामन संभालना तुम्हे आता क्यों नहीं है ?
घूंघट में रहना तुम्हे पता क्यों नहीं है ?
"तुम नई पहचान बनाओ खुद की"
ये मुझसे कोई कहता क्यों नहीं है ??
हार साल नहीं,मेरी होली हर महीने आती है,
जीवन बनाने खातिर, पैमानों सी खून बहती है,
कोई मुझसे ये नहीं पूछता,"ठीक हो ?!"
कहते हैं,"दूर रहो,गंदी हुई हो ..."
कोई मुझसे नहीं पूछता,
किनारा कौनसा नया बनाओगी ?
कहते हैं,
हदें हैं ये तुम्हारी,इनसे छलांग तो नहीं लगाओगी ?
हां,छलांग लगाऊंगी,
दायरों की बेड़ियां भी तोडूंगी,
तुम आवाज़ मेरी दबाओगे,
मैं कलम से आगाज़ सजाऊंगी ।
इजाज़त की मोहताज नहीं,
मैं नया कानून बनाऊंगी ।
फ़िर दोबारा बिलकुल नहीं कहूंगी ,
"मुझसे कोई नहीं पूछता है.."
सलाह ले जिससे हकीम - वकील भी,
ऐसी चमकती सक्षियत बनाऊंगी ।।
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