आकस्मिक विचार

बदन टूटने सा महसूस होता है, दिमाग बस करने को चीखता है, काम करते करते हाथ रुकते हैं, एकदम से ख़ाली हो जाते हो, आस- पास की आवाज़ें आनी बंद हो जाती हैं ।

थक कर या परेशान हो कर,तुम वो काम अधूरा छोड़ कर आ जाते हो । आराम करने के लिए जैसे ही आँखें बंद करते हो,यहां तक का तुम्हारा पूरा सफ़र कोई चलचित्र सा आँखो के आगे चलने लगता है । बेचैनी बढ़ती जाती है । जिस गति से आराम करने आए थे,उसी गति से फ़िर उस काम को पूरा करने उठकर चले जाते हो ।

होता है ऐसा ?!

लोग कहते हैं,"बिखरने का मुझको शौक़ है बड़ा...." । लेकिन,क्या सचमें बस बिखर जाना, अंत है ? या बिखरके कुछ और बन जाना चाहते हो ? बिखरते वो हैं,जो पहल टूट हों । तुम भी टूटे हो क्या ?!

एक बात कहना चाहूंगी, टूटता हर कोई है ।तुम, मैं,सब । लेकिन,जो बिखर गया,वो मानो सब हार गया ।

हर एक शक्स जो इसे पढ़ रहा है, हर एक निगाह जो मेरे शब्दों को समझने की कोशिश में मसरूफ़ है, उन्ही निगाहों के पलकों पर बैठे कुछ सपने हैं । वो सपने तुम्हारे अपने हैं । उन्हें पूरा करने के राह में शायद तूमने चलना शुरू भी कर दिया होगा । कई बार हारे होगे । है ना ?! क्या एक ही कोशिश में जीत जाने की उम्मीद है ?! नहीं ?? हां ये बिलकुल सच है,की, कुछ जंग तुमने जीत लिए,कुछ हार गए । लेकिन,क्या एक ही बार चोट खा कर घर बैठ जाओगे ?! बारिश होती है तो बारिश के मौसम घर पर ही रहते हो या छाता खोलकर बाहर जाते हो ?!

हर आंधी के बाद पेड़ पर बनाया घोंसला टूट कर गिर जाता है । बचने के खातिर चिड़िया फिर तिनका तिनका जोड़ घोंसला बना ही लेटी है । बिखरने नहीं देती चिड़िया अपने होंसले को साथ ही अपने घोंसले को ।

टूटो । टूटने की आज़ादी तुम्हे है । बंद कमरे में खूब रो । रोने की आज़ादी है तुम्हे । सुनाओ अपनी कहानी,हार की,जीत की । बस,एक बात का ध्यान रखना,खुदको बिखरने मत देना ।

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