Hiiii readers,
आज कोई कहानी,कोई कविता नहीं है मेरे पास । एक मन की बात है, मन से,मन के लिए करनी है । आशा है खुले दिल से आप मेरे इन शब्दों को अपनाएंगे ।
ज़िंदगी की भागदौड़ के बीच हम सब अपने बचपन को कहीं न कहीं याद करते हैं । है ना ?! और सोचते हैं,काश सब बचपन सा हो जाता । खुश रहते,हस्ते खेलते, फलाना - फलाना । कुछ यादों को बंद आँखों की तिजोरी में कई सालों से समेत रखा था,उसे दोबारा से जीते हैं । बीता हुआ कल सही,लेकिन, उन चांद लम्हों को, खयालों में ही जी लेने का मज़ा और सुकून कुछ और ही है । साथ ही मिलती है एक नई उम्मीद, फ़िर से सबकुछ एक नए सिरे से शुरुवात करते की । तो आज उसी तिजोरी में दाहिने तरफ़ के कोने से एक छोटी सी याद निकाल,उसे जीते हैं । उस सफ़र पर चल पड़ते हैं,जिस सफ़र के नींव है एक उम्मीद कुछ खोया हुआ वापिस मिल जाने की । तो चलें ?!
सुनो सुनो,यहां तक पढ़ लिया है तो आगे भी पढ़ लो । किसे पता,शायद तुम्हारा कुछ खोया हुआ तुम्हे वापिस मिल जाए ।
अच्छा,याद करो,कोई किस्सा तुम्हारे बचपन का,जब तुम्हारी कोई ख़ास चीज़ खो गई हो । ओ अच्छा,एक बार स्कूल में,तुम्हारी नीले रंग की खुशबू वाली इरेसर चोरी गई थी । और तुम्हारी फेवरेट भी थी । ओहो ! तुमने पूरे क्लास भर की बैग चेक की । नहीं मिली ?? रोए भी थे ।
(No cheating हां,याद करो,सही में करो यार, चलो चलो आँख बंद करके याद करो !!! )
अच्छा छोड़ो ये सब, हम तिजोरी के बाएं कोने से कोई दूसरा याद उठा लेते हैं । याद है जब उस sunday,मम्मी के साथ मॉल घूमने गए थे,और भीड़ में कब मम्मी का हाथ छूट गया पता नहीं चला । लगा था पीछे आ रही होंगी पर जब मुड़ कर देखा तो वो नाज़ुक सी जान खुदको सिर्फ़ अनजान लोगों के बीच पता है । उसे देख तो सभी रहे थे,लेकिन कोई पहचानता नहीं था । उन अनजान चेहरों और आवाजों के बीच तुम्हारी आँखें किसी अपने को ढूंढ रही होती हैं । मम्मी कहां चली गईं ?! और बीच में खड़े रोने लग जाते हो और ज़ोर से, अंतरिक्ष तक पहुंचजाने वाली आवाज़ से चिल्लाते थे,"मम्मा" । हुआ है ना तुम्हारे साथ भी ??
अरे यार, कहां खो गए ?! ऐसी यादें खौफनाक लगती हैं ना ?! डराती हैं ?! Insecure feel कराते हैं ?! Confuse करते हैं ?!
अब बताओ,अगर बस एक छोटी सी चीज़ बचपन में खो जाने पर इतनी उदासी छा जाती तुम्हारे चेहरे पर,क्यों ?! बाज़ार में तो नया मिलजाता ?! मम्मी का हाथ छूट गया तो इतना हंगामा कर दिया,अरे जाने देते ना,कितना डांटती थी तुम्हे,खोने देते । क्यों ?!
कोई अपना एक लम्हा आँखों से ओझल हो जाने पर,इतनी बेचैनी । क्यूं ?! और तुम जो यहां ज़िंदगी को पाने की दौड़ में खुदको खो कर बैठे हो ?! उसका क्या ?! बस कहीं लापता हो । खुदको पहचानने से इनकार कर देते हो । लगे हो कोई प्रॉजेक्ट में,किसी को सोशल मीडिया पर स्टॉक करने में,रील पे रील देखे जा रहे हो । और तुम्हारे किसी कोने में तुम अकेले सिमटे से बैठे हो इस उम्मीद में की किसी दिन तुम अपनी तरफ़ एक दोस्ती का हाथ बढ़ा दो । ओहो ! आँखों में बैचैनी,माथे पर शिकन,कंधों पर पूरे संसार का बोझ लिए चल रहे हो । रुको जरा । ठहर जाओ । ये लो पानी पीलो। यहाँ आओ आराम करो ।
सुनो, अपने आप को जो भूल कर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हो,मत करो । आज बैठो,यादों की तिजोरी में झांको,ढूंढो और ढूंढ लाओ दोबारा अपने आप को । याद करो, कहां आखरी बार देखा था उसे ?! जाओ वहां,और वापिस लेकर आओ । जाओ जाओ ।
पता है,कुछ खो जाए,वो याद बन कर हमेशा हमारे साथ रहती है । लेकिन,ये "मैं" खो जाने पर कुछ याद नहीं रहता । ना भूत,ना भविष्य,और न ही हमारा आज। खुदको खुदके साथ रखना उतना ही जरूरी है जितना सांसों का चलना जरूरी है ।
बहुत हो गई दुनियादारी, छोड़ो सारे काम,एक दिन मनाते हैं खुदके नाम ।
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खो गए हम कहाँ,रंगों से ये जहाँ,
टेढ़े-मेढ़े रास्ते हैं,जादुई इमारतें हैं,
मैं भी हूँ,तू भी है यहाँ......
खोयी सोयी सड़को पे,
सितारों के कन्धों पे,
हम नाचते उड़ते हैं यहाँ....
खो गए हम कहाँ,रंगों से ये जहाँ......
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