मेरी कुछ चीज़ें अब भी तुम्हारे पास हैं, हैं ना ?!
पहली मुलकात में मेरा इस्तेमाल किया हुआ टिशू,
दूसरी मुलाकात में मेरा गिराया हुआ झुमका,
तीसरी मुलाकात में मेरा छोड़ा हुआ रूमाल,
चौथी मुलाकात में फाइल से गिरी मेरी वो तस्वीर,
पांचवी मुलाकात में मेरे गजरे का फ़ूल,
छठी मुलाकात में तुम्हारे शर्ट पर लगा मेरा बाल,जब हम पहली बार गले मिले थे,
सातवीं मुलाकात में मेरे दुपट्टे का धागा जो तुम्हारी घड़ी में फ़स गई थी ।।
आठवीं मुलाकात तक तुम मेरी कविताओं में उतर चुके थे,
नौवीं मुलाकात में तो मैं खुद तुम्हे अपनी सबसे पसंदीदा कलम दे आई थी,
और दसवीं मुलाकात,सबसे यादगार,
जब मैंने तुम्हे अपनी कविता वाली डायरी दी थी,और आखरी पन्ने पर लिखादिया था अपना फ़ोन नंबर ।
तुमने ठीक तीन दिन बाद,कॉल किया था,याद है मुझे ।
और कहा,"डायरी मैंने पूरी पढ़ी,तब जाकर ये हसीन इनाम मिला है ।"
बहुत खुश थी मैं ।
ग्वारवीं मुलाकात ।
हमने एक दूसरे को दिल की बात बता ही दी आख़िरकार,
मैंने कविता के जरिए,तुमने मेरी तस्वीर के जरिए जो तुमने आपने हाथों से बनाए थे इस तरह की हाथों से रंग छूटे नहीं थे तुम्हारे ।
उस दिन पता चला क्यों,वो तस्वीर जो गिरी थी फाइल से,वो अपने पास रख ली थी तुमने ।
एक लंबी शाम साथ गुजारी,समंदर किनारे ।
फ़िर घर लौट गए ।
अकेले ?! नहीं तो ।
साथ लाए थे,कुछ खूबसूरत लम्हे और जोरों सा एक धड़कता दिल ।
घर पहुंचकर मैंने तुम्हे कॉल किया था,
क्योंकि,वो मुलाकात शायद काफ़ी नहीं थी,मुझे और बातें करनी थी तुमसे ।
फोन के उस तरफ़ से आवाज़ आई,"हेलो "
वो आवाज़ तुम्हारी नहीं थीं,ये जान लिया था, उस "हेलो" से पहले ।
मैंने कहा,"आप कौन ?"
उस तरफ़ से किसीने कहा," मैं,अमर का दोस्त,वो वॉशरूम में है,आते ही कॉल करने कहता हूं ।"
उसके बाद वो कॉल कभी नहीं आया ।
तुम थे कहां ?! वॉशरूम में ?!
आज उस ग्वारवें मुलाकात को ३ साल,८ महीने,५ दिन हो गए ।
ना कॉल आया ,ना तुम ।
और आज सुबह ही पता चला,तुम कहां थे ।
वो जो दोस्त था न तुम्हारा, जिसने कॉल पिक किया था मेरा,
जानते थे उसे ?!
वो वही अनजान शक्स था ना,जिसने तुम्हे हॉस्पिटल पहुंचाया था,
और तुमने उससे कहा था,"एक कॉल आएगा,कुछ देर बाद । उठाकर कहदेना, मैं वॉशरूम में हूं ।"
नाम देखो अपना, अमर ।
सही तो है । अमर हो तुम,आज भी ।
मेरी यादों में,मेरी बातों में,मेरी डायरी में ।
अरे हां,मैंने भी चित्रकारी सीखली, तुम्हारी एक तस्वीर बनाई है ।
रंग तो हाथ से छूट नहीं रहा है,जैसे उस शाम तुम्हारे हाथों से भी नहीं छूटे थे ।
मैंने उस तस्वीर में खुदको भी बनाया है,
तुम्हारे पास,एकदम पास ।
और , बनाई है वो ग्यारवीं मुलाकात,हुबहू ।
अगली बार मिलेंगे तो,साथ लाऊंगी तुम्हे दिखाने ।
और हां,तुमने जो बाकी दस मुलाकातों में मेरी वो चीज़ें रखली थीं,वो मुझे लौटा देना,
मैं वो लौटा दूंगी,जो चीज़ें मैंने रहली थीं,तुम्हारी ।।
बताओ,कहां और कब मिल रहे हैं हम, बारवीं बार ?!
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